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"लालसरैया या लालसराय" (Lal saraiya) पश्चिम चम्पारण का नील का केंद्र, आज इतिहास भूल चुके है लोग।

  • लेखक की तस्वीर: Tanweer adil
    Tanweer adil
  • 23 जून 2022
  • 3 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 13 जुल॰ 2022

लालसराय: सुगौली स्टेशन से करीब पांच मील दूर बेतिया अनुमंडल में नील की फैक्ट्री का केंद्र रहा। इसे 1822 के आसपास तुकौलिया (तुरकावलिया) के आउटवर्क के रूप में बनाया गया था। 1846 में, स्थानीय रिपोर्ट के अनुसार, यह स्थान मिस्टर "जी. राल्कनेस" को एक हजार टन जई के लिए बेच दिया गया था।

बाद में इसे मिस्टर जेम्स मैकलियोड के लिए खरीदा गया, जो अपने आतिथ्य और अपनी घुड़ सवारी के लिए जाने जाते थे। वह रेसिंग अस्तबल भी रखता था, और एक समय में उसकी ख्याति भारत में टर्फ (घास के मैदान) पर काफी प्रसिद्ध थी। उसने इसके साथ रायघाट, फुरवाह और मधुपुर का निर्माण कराया था, जो शायद नील के डिपो रहे होंगे। बाद के दो अब निर्वासित हैं।


क्यों जरूरी है लालसराय का इतिहास:

रैयतों (किसानों) ने नील उगाने से इनकार कर दिया, और कुछ मामलों में पहले से ही नील के लिए तैयार भूमि में भी रैयतों (किसानों) ने नील उगाने से इंकार कर दिया, इस तरह की कार्यवाही का पहला उदाहरण जौकटिया नामक एक गांव में हुआ था। जिसने, लालसराय कारखाने के साथ किए गए अनुबंध की अवहेलना करते हुए, ठंडे मौसम की फसलों के साथ अपनी जमीनो पर अपने पसंद की फसले बोईं; और इस उदाहरण का अन्य ग्रामीणों द्वारा तेजी से अनुसरण किया गया।

बागान मालिकों के बहुत बड़े हित दांव पर लगे थे, और तत्कालीन प्रशासन ने सोचा कि यह आवश्यक है कि वे अपनी शिकायतों पर शीघ्र और अंतिम निपटारा हो। इसलिए सरकार ने, बागान मालिकों अनुरोध पर, मोतिहारी में एक छोटा सा "वाद न्यायालय" स्थापित किया, जिसके अधिकार क्षेत्र में उनके और रैयतों (किसानों) के बीच अनुबंध के उल्लंघन के सभी मामलों की सुनवाई के लिए पूरे चंपारण जिले का अधिकार था।

यह अदालत दो न्यायाधीशों से बनी थी, एक अनुबंधित सिविल सेवक, आमतौर पर एक यूरोपीय, और दूसरा एक भारतीय सज्जन और इन दोनों अधिकारियों को नील प्रश्न से जुड़े सभी मुकदमों की सुनवाई के लिए एक साथ बैठने का निर्देश दिया गया था, ज्यादातर फैसले बागान मालिकों के ही हीत में लिए गए। पर इस बात से कम से कम इतना हुआ की किसानों द्वारा बागान मालिकों के खिलाफ रह रह कर आवाजें उठने लगी, जो किसानो को एक साथ लाने में काफी मददगार साबित हुआ।

लालसराय में अब नील की खेती करना बंद हो चूका है, लेकिन गोदामों के अवशेष अब भी मिल जाते है।

"1951 के जनगणना" के अनुसार गांव की आबादी 2545 थी, नील के प्रोसेसिंग में कामगारों को पूर्वी पाकिस्तान (अब का बांग्ला देश) से विस्थापित कर उनकी कॉलोनी लालसराय में स्थापित की गई थी। इससे गांव की आबादी बढ़ गई।


पोस्ट ऑफिस : लाल-सरैया

पोस्ट ऑफिस: ब्रांच ऑफिस

डिस्ट्रिक्ट: पश्चिम चम्पारण

स्टेट बिहार

पिन कोड: 845454

(Lalsaraiya or Lalsarai "The center of indigo (Neel) cultivation of West Champaran. today people have forgotten history.)

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